शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

खाली हाथ

खाली हाथ
          बीमार राधे उरांव ने चटाई पर लेटे हुए आकाश की ओर कातर दृष्टि से निहारा। वह अपने आप से बतियाने लगा,"क्या इस वर्ष भी पानी नहीं बरसेगा? हे भगवान! पांच बरस बीत गए पानी बरसे, अब तो दया करो…सर्वानाश निशिचत है…खेत रेगिस्तान बनते जा रहें हैं…बैलों की हड्डियां झलकती हैं…कुत्ते दिन में भी रोते हैं… अपनी शुकरी के गालों पर गड्ढे पड़ गए हैं। वह सूख कर ठूंठ हो गयी है…घर में एक दाना अन्न नहीं है…कैसे दिन कटेंगे? सुगिया और बुधना अभी बच्चे हैं। वे कभी-कभी भात खाने के लिए मचल उठाते हैं। कलेजा हूक मारता है…बांस की कोंपलें,घास-पात, जंगली बेर आदि पर मेरे ये बच्चे कितने दिन जीवित रह पाएंगे?"

          तभी राधे की नजर मजूरी कर वापस लौटी अपनी बड़ी बेटी रतिया पर पड़ जाती है। वह रतिया से पूछ्ता है, "ए रतिया, आइज का बजार करले ? कोई काम मिला या खाली हाथ लौटी?"

          "बाबा आइज त काम भेटालउ, लेकिन कल मुश्किल लगउला…कल झारखण्ड बदं है…किसी नेता का लड़का गिरफ़्तार हो गया है, बलात्कार के आरोप में…भगवान करे, नेता जी का बलत्कारी बेटा आज शाम ही जेल से छूट जाए, नहीं तो कल किसी मजदूर को काम नहीं मिलेगा…आटा लाई हूं…मां को कह दूंगी कि सुगिया और बुधना के लिए ही रोटियां सेंकेगी…हम लोग तो कुछ भी खा लेंगे, बाबा…वैसे, एक सेठ के यहां शादी है्…बात कर आई हूं…बरतन मांजने और जूठे पत्तल उठाने के लिये वह मुझको दो दिन काम देगा…तुम चिंता मत करो, बाबा।"

         लेकिन, राधे चिंता में डूब गया,"यह लड़की दूसरे की शादी में बरतन मांजेगी, जूठे पत्तल उठाएगी, पर भगवान, इसकी शादी कभी नहीं होगी क्या? बीस बरस की हो गई है…बड़ी मेहनत और उम्मीद से इसे बी ए तक पढाया था…पर इसके भाग्य में मजूरी करना ही लिखा था, ईंट ढोना ही लिखा था…पर रतिया मजूरी न करे तो पूरा परिवार ही भूखे मर जाएगा…मैं तो बीमारी से लाचार हो गया हूं, क्या करूं?"

          सूखी झाड़ियों की टहनियों की गांठे पटके जाने की आवाज से राधे का ध्यान भंग हो गया। सूखी पतियां और टहनियां इकटठा कर लौटी शुकरी को उसने भरपूर नजर देखा। वह फ़िर अपने खयालों में खो गया,"शुकरी फ़ारेस्ट गार्डों की नजर चुरा कर सूखी पत्तियां और झाड़ियां की टहनियां जंगल से चुरा कर न लाए तो चूल्हा न जले…"

          और उस दिन की बात तो मैं भूल ही नहीं सकता…फ़ारेस्ट गार्ड ने शुकरी को जंगल में पत्तियां बुहारते पकड़ लिया था…उस कमीने ने शुकरी को कितनी गालियां दी थीं…जंगली की औलाद कहा था और उसे जंगल से बाहर धकेल दिया था…फ़िर भी शुकरी जंगल से सूखी पत्तियां और झाड़ियां चुनने, नहीं…चुराने गई थी…भूख के भय के आगे, कोई भय नहीं टिक पाता!"

          गांव के पूरब कोने से लाउडस्पीकर से किसी के बोलने की अस्पष्ट आवाज राधे ने सुनी! वह चौंक पड़ा,"वोट कर समय आ गेलयं का ? उसने अपनी उगलियों पर गिन कर देखा औए बुदबुदया,"चुनाव होला तीन साल त बीतल हे, और इतनी जलदी चुनाव सिर पर आ गया? पर इस बार कोई क्या वोट देगा? आधे से अधिक लोग तो गांव छोड़ कर बाहर जा चुके हैं… और जो गांव में रह गए हैं, उनमें तुनको साहू और फ़कीरा ठेकेदार को छोड़ कर, सब मर जाएंगे, भूख से बिलबिला कर मर जाएंगे!"

          "क्या बड़बड़ा रहे हो राधे? कौन मर जाएगा? अरे, औए कोई मरे न मरे, तुम जरूर आज कल में मर जाओगा।" तुनको ने राधे की बगल में चटाई पर बैठते हुए पूछा,"क्या मेरा पैसा चुकाए बिना ऊपर चले जाने का इरादा है?"

         "ए तुनको, एसन मत बोलल कर रे…तुम मेरे स्कूल के साथी हो…मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊगां…रतिया ने शहर के डाक्टर से दवा ला कर दी है।"

         "देखो राधे, मैं रुपए का व्यापार करता हूं…तुमने मुझसे दो सौ रुपए कर्ज लिए थे…सूद मिला कर हुए पांच सौ रुपए…तुम मर जाओगे तो क्या मैं शुकरी से रुपए मांगूंगा? क्या वह इतने रुपए लौटा पाएगी ? अरे, अपनी पांच कट्ठा जमीन मेरे नाम लिख दे…मैं अगले हफ़्ते तुमको खाट पर लिटा कर कोर्ट ले जाऊंगा।"

          "ए तुनको, दो-चार महीने रुक जा, तुम्हारे रुपए लौटा दूंगा। विश्वास करो और देख, मेरी जमीन हथियाने की बात मन से निकाल दो, हाथ जोड़ कर प्रार्थना कर रहा हूं…"

          कामुक घाघ की तरह, जीभ से अपने होठ भिगोते हुए तुनको ने कहा, "एक बात हो सकती है।"

          "क्या बात हो सकती है?"

          "रतिया को मेरे पास भेज दो!"

          राधे उठ कर खड़ा हो गया। क्रोध आवेश में उसका पूरा बदन कांप रहा था उसने बड़ी नफ़रत से तुनको की ओर देखा और चीख पड़ा,"अभी मैं बीमार हूं, कमजोर हूं, वर्ना मैं तुम्हारा गला दबा देता…तुम्हारी जान ले लेता…अब मैं किसी किसी कीमत पर तुम्हारा पैसा नहीं लैटाऊंगा। जल्दी यहां से दफ़ा हो जाओ।"

          'मैं तुम पर मुकदमा भी ठोक दूंगा।'

          राधे उबल पड़ा, "तोयं जे सोचिसला से कर…पापी के मुराद कभी पूरी नई होवी…तुम्हारे उपर वज्र के डाल टूट कर गिर पड़ेंगें…तुम पर बिजली गिरेगी!"

          राधे अभी और कुछ बोलता, लेकिन तभी रतिया वहां आ गई। उसने राधे को चटाई पर हाथ पकड़ कर बैठाया और कहा,"बाबा, तुम चटाई पर आराम से बैठो। मैं तुमको सूदखोर से बातचीत करने के लिए हंसिया ले कर तुरंत आ रही हूं!"रतिया की बात सुनकर तुनको भाग खड़ा हुआ।

         लाउडस्पीकर से आती आवाज को अब राधे साफ़-साफ़ सुन पा रहा था,"कला शाम…स्कूल मैदान में… समाज सेवक मंत्री रामखेलावन जी का भाषण होगा…वे अकालपीड़ितों को एक सप्ताह का राशन भी बांटेंगे…राशन के साथ भाषण का लाभ उठाएं…"

         राधे मन ही मन खुश हो उठा,"एक सप्ताह का राशन मिलेगा, यानी, मेरे बच्चों की उम्र एक सप्ताह और बढ़ जाएगी मैं राशन लेने जाऊंगा, थोड़ा-सा चलना-फ़िरना भी हो जाएगा और…"

         दूसरे दिन, स्कूल के मैदान में शाम के समय ऊंचे मंच से मंत्री रामखेलावन जी भाषण दे रहे थे…एक घंटा बीत गया फ़िर भी उनका भाषण जारी था,"…आपकी गरीबी का कारण हम जानते हैं, लेकिन आपको बताएंगे नहीं, गोपनीय मामला है और मंत्री बनने के समय हमने गोपनीयता की शपथ ली है…आपलोग बस एक बात का ध्यान रखना, इस बार के चुनाव में मेरी पार्टी को ही यहां से जीतना चाहिए। अगर आपलोगों ने फ़िर बरगद छाप को वोट दिया तो, जान लीजिए, यहां कभी पानी नहीं बरसेगा…दरिद्रा देवी आप लोगों पर सवार हो जाएंगी…औए अगर आप लोगों ने मेरी पार्टी को केला छाप में मुहर लगा कर विजयी बनाया तो, हम आपकी गरीबी अगले पांच बरस में दूर कर देंगे…"

          राधे चिड़चिड़ा गया। बुदबुदाया "ससुरा पांच बरस में तो यहां के सारे गरीब सुरधाम चले जाएंगे! यह किसकी गरीबी दूर करेगा ? अरे, भाषण समाप्त कर जल्दी से राशन बांट, खड़े-खड़े मेरी कमर टूटी जा रही है…"

          पर मंत्री रामखेलावन ने स्पीड पकड़ ली थी,"इसी माह इस गांव में बिजली आ जाएगी, लाइन बिछाने का आर्डर दे दिया है…सड़क भी बन जाएगी और बस स्टाप भी बनवा दूंगा…"

          राधे मन ही मन उबल पड़ा,"अरे, यहां भूख के मारे आखों के आगे अंधेरा छा रहा है और इसे बिजली की लाइन बिछाने की सूझ रही है, जैसे बल्ब जला देने से भूखे की आखों के आगे का अंधेरा दूर हो जाएगा…अरे, यहां सड़क और सवारी की कोई जरूरत नहीं, इस गांव के लोग अब ऐसी यात्रा पर निकलने वाले हैं, जिस यात्रा के लिए सड़क या सवारी की जरूरत ही नहीं पड़ती!"

          मंत्री रामखेलावन जानते थे कि जब तक वे राशन बांटेंगे नहीं, तब तक भीड़ छंटेगी नहीं, इसलिए दो घंटे तक भाषण देते रहे। गांव-वासियों को गांव की समस्याओं से लेकर अंतरिक्ष तक की समस्याओं का हाल सुनाया। दिल्ली से लेकर, अमेरिका तक की राजनिति समझाई समाजवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद के रहस्यों पर टिप्पणियां कीं। अपने मित्रों के नाम गिनाए और शत्रुओं का परिचय दिया…और जब मत्रीं रामखेलावन जी स्वयं बोलते-बोलते थक गए, तब उन्होंने राशन के पैकट बांटने का कार्यक्रम प्रांरभ किया।

           शुकरी ने पैकट से गेहूं निकाल कर फ़टका और अंदाज करती हुई बोली,"पांच किलो गेहूं में ढाई किलो तो, घुन खाया हुआ है!"

           राधे बोला,"चलो ढाई घंटे खड़े रहने पर कुछ तो हासिल हुआ ही।'

           दोनों बातचीत कर ही रहे थे कि वहां रतिया आ पहुंची और खुशी से भरी हुई आवाज में बोली,"बाबा,बाबा मुझे नौकरी मिल गई…टीचर की नौकरी…इसी सप्ताह मुझे मुरहू जाना होगा…वहीं के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में नौकरी लगी है।"

           राधे और शुकरी की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। लेकिन कु्छ बड़े सवाल उठ खड़े हो गये थे ,"रतिया को एक माह बाद वेतन मिलेगा…यह एक माह बिना पैसे के कैसे कटेगा? रतिया मुरहू में, वेतन मिलने तक अपना खर्च कैसे चलाएगी?…"

           शुकरी ने समाधान दिया,"मैं रतिया की जगह मजूरी करूंगी और रतिया मेरी हंसूली बेच कर मुरहू में अपने रहने की व्यवस्था करेगी…"

          रतिया मुरहू चली गई शुकरी मजूरी करने जाने लगी…बीमार राधे ने पत्तियां और लकड़ियां बिनने का काम अपने जिम्मे ले लिया…किसी तरह समय गुजरने लगा…दुख का समय जल्दी नहीं बीतता और सुख के समय में गरूड़ के पंख लगे होते हैं, दुख आता है तो जल्दी जाने का नाम नहीं लेता और सुख तो पल-दो-पल का सपना है…गांव में अचानक हैजा फ़ैल गया…किसी न किसी के घर में रोज मातम छा जाता। एक तो आकाल ऊपर से हैजा का प्रकोप, बहुत ही विकट समय था…तुनकों के यहां चार-चार जने एक ही दिन मौत के शिकार हो गए…जब वह अपनी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी को फ़ूंक कर शाम में अपने घर पहुंचा तो शायद हैजे के कीटाणु उसका इंतजार कर रहे थे…

          पत्ते चुन-बिन कर राधे अप्ने घर लौट रहा था तो उसे तुनको के घर के अंदर से किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। राधे तुनको के घर में प्रवेश कर गय। वहां उसने तुनको को हैजा से ग्रस्त पाया। राधे झटपट उसकी सेवा में जुट गया…उसने प्रखंड अस्पताल से टाक्टर को बुला कर लाया…शुकरी भी तुनको की सेवा में हाथ बांटने लगी।

           रतिया को पहला वेतन मिला तो उसने झटपट दो दिनों की छुट्टी ले ली और अपने गांव चल पड़ी…गांव में उसने अजीब-सा सन्नाटा महसूस किया। हर घर उसे उजड़ा-उजड़ा-सा लग रहा था…राह में उसे कारे मिल गया। उसने रतिया को बताया,"गांव में हैजा फ़ैल गया है…रोज कई लोग मर रहे हैं…"

           जब रतिया को तुनको का घर दिखाई पड़ा तो वह मन ही मन उबल पड़ी,"इस सूदखोर, के हाथों में आज ही पांच सौ रूपया रख दूंगी…कर्ज अदा कर दूंगी, फ़िर उससे पुछूंगी कि वह क्या सोच कर मेरी सौदेबाजी कर रहा था ? हुंह, यह सूदखोर, आदमी को बिकने वाली वस्तु समझता है…और लड़कियों को सिर्फ़ भोगने की वस्तु…वह लफ़ंगा है…आज मैं उसे खूब खड़ी-खोटी सुनाऊंगी…"

           रतिया अपनी झोपड़ी के निकट पहुंची। झोपड़ी खाली पड़ी थी। वह घबरा गई। वह पुकारने लगी,"बाबा, बाबा,…सुगिया… बुधना…" तभी उसे सुगिया और बुधना टुंगड़ी से नीचे उतरते दिखालाई पड़े। उनके करीब आते ही रतिया ने पूछा,"बाबा आउर मायं कहां गेल हकयं?"

           "तुनको बाबा के घर" सुगिया ने बताया

            रतिया चिंता में डूब गई," जरूर वे दोनों तुनको से ॠण लेने गए होंगे।"

            रतिया चिंता तुंरत तुनको के घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में रतिया को राधे से भेंट हो गई-

          "बाबा, आप तुनको के घर क्यों गए? क्या आप भूल गए कि उसने आपसे आपकी बेटी की सौदेबाजी करनी चाही थी ?"

           राधे ने दो पल चुप्पी के बाद जवाब दिया,"तुनको की पत्नी और उसके सभी बच्चे हैजा के शिकार हो गए …अब वह बिल्कुल अकेला है और हैजा से ग्रस्त भी… उसने हमारे साथ जो कुछ भी किया, वह उसका व्यवहार था, उसका चरित्र था। रतिया मैं तुम्हारी तरह बी ए पास नहीं हूं, लेकिन मैंने तुनको की सेवा इसलिए की क्योंकि मैं तुनको नहीं, राधे हूं, चलो, तुम भी उससे एकबार मिल लो। वह अब कुछ ही देर का मेहमान है।"

          "हां बाबा, उससे तो मुझे एकबार मिलना ही है! उसके पैसे जो लौटाने हैं। उसके हाथ में पांच सौ के नोट रख दूंगा तो, वह सूदखोर चैन से मरेगा, वर्ना मरने के बाद भी वह हमलोगों के पीछे लगा रहेगा।"

          राधे ने कहा,"रतिया, मन से वैर की भावना निकाल दे और मेरे साथ तुनको के घर चल। हर समय हर आदमी एक सा नहीं होता।"

           रतिया, राधे के पीछे-पीछे तुनको के घर की ओर चल पड़ी। रतिया घर के द्वार पर ठिठक पड़ी। घर के अंदर से तुनको के बोलने की आवाज आ रही थी-

          "रतिया की मां, किसी को मुरहू भेज कर रतिया को बुलवा दो…उसे देखे बिना, इस पापी के प्राण नहीं छूटेंगे…" तुनको अपनी बात पूरी भी न कर पाया था कि रतिया उसके सामने आ कर खड़ी हो गई। तुनको के आखों में चमक आ गई थी। लेकिन, रतिया की आखों में क्रोध के चिन्ह उभर आए थे…रतिया ने अपने बैग से पांच सौ रूपए निकाल कर तुनको की ओर बढ़ा दिए। तुनको ने हाथ जोड़ लिए। उसकी आखों में आंसू छ्लक पड़े, पर शीघ्र ही उसने अपने पर काबू पाते हुए कहा,"रतिया, मेरे हाथ खाली नहीं हैं कि मैं तुमसे रुपए ले सकूं…देखो, मेरे हाथ पाप से भरे हुए हैं…मैं अपने हाथ खाली भी नहीं करना चाहता…मैं नरक जाना चाहता हूं…उसे भोगना चाहता हूं…वैसे, मैं वास्तव में तुम्हारे बाबा का ही कर्जदार हूं। तुम्हारे बाबा जब दोनवाली अपनी जमीन बेच रहे थे तो, मैंने उनसे दो सौ रूपय की बेईमानी कर ली थी। कोर्ट का खर्च अधिक बता दिया था। वही दो सौ रुपय मैंने तुम्हारे बाबा को ॠण में दिए थे…"तुनको ने एक हिचकी ली और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

         रतिया की आखों से आसू की धारा बह चली थी। वह तुनको के खाली हाथ निहार रही थी…

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