गुरुवार, 4 नवंबर 2010

दस्तूरी मल ईमानदार

हास्य एकांकी
*दिलीप कुमार तेतरवे 
पात्र:
१. दस्तूरी मल ईमानदार-कार्यालय हेड
२. लपक लाल-लीपिक
३.गरीब दास- निगरानी विभाग का इंस्पेक्टर
४. कविता देवी- निगरानी विभाग की सब-इन्स्पेक्टर




(स्थान: कार्यालय.....क्रिकेट कमेंट्री की आवाज)

दस्तूरी मल ईमानदार: अमां यार लपक लाल,  क्या स्कोर हुआ....चिकनों ने रन बनाये  या आया राम गया राम हो रहे हैं, ईमानदारी से ?

गरीब दास: सर, पहले मुझको तो बताएं कि मेरा काम कब होगा?

 दस्तूरी मल ईमानदार: अरे जनाब गरीब दास, आप कार्यालय की मर्यादा  को समझते नहीं क्या? शोर मचाए चले जा रहे हैं कि काम कब होगा ...काम कब होगा...जरा सब्र कीजीए .....देखते नहीं कि भारत की टीम का कितना खस्ता हाल है ? आपमें ज़रा भी राष्ट्र प्रेम नहीं है.....

गरीब दास: सर, कार्यालय में क्रिकेट कमेंट्री सुनना....

दस्तूरी मल ईमानदार: खबरदार, इस तरह की बात कर, आप एक सेवक को अपना काम करने से रोक रहे हैं. आप बैठिये, मेरे फ्री होने का इन्तजार कीजीए, जब मैं फ्री होता हूँ, तब  मैं आपसे बात करूंगा ....हाँ, तो लपक लाल जी , क्या हाल है चिकनों का ?

लपक लाल: दस्तूरी जी, दो तो लपके गए और दो जूझ रहे हैं....रन नहीं बना रहे हैं...गर्मी भी बहुत है फील्ड पर....

दस्तूरी मल ईमानदार: अरे जनाब लपक लाल जी, ये चिकने मैदान में  ज्यादा पसीना बहायेंगे तो फिर विज्ञापन के लिए उनका चेहरा खराब हो जाएगा...रात  की पार्टी में भी कोई उनको  घास नहीं  डालेगी, ईमानदारी से....हा, हा, हा........

लपक लाल: अरे जनाब बालर सुरिंदर  का तो इसी शहर की एक हसीना से इश्क चल रहा है....

 दस्तूरी मल ईमानदार: तब तो उस पठ्ठे को तो चौवा - छक्का जड़ना चाहिए, ईमानदारी से....हा,हा,हा........खैर. छोड़िए इन बातों को और बताएं कि फ्री- पास का जुगाड़ होगा कि नहीं, ईमानदारी से...
गरीब दास: सर, सर वन मिनट प्लीज,  इस गरीब दास का काम कब तक होगा ?

दस्तूरी मल ईमानदार: अरे कबाब में हड्डी गरीब दास जी, आपका काम तब होगा, जब आप हमलोगों के लिए अमीर दास बन जायेंगे, ईमानदारी से, (सभी कर्मचारियों की हँसी का समवेत स्वर)....

लपक लाल: दस्तूरी मल ईमान्दार जी, इस गरीब दास जी को अब तक दस्तूरी का डीटेल दिया कि नहीं?

दस्तूरी मल ईमानदार: अरे लपक लाल जी, ये गरीब दास जी ज़रा ओल्डी टाईप के आदमी लग रहे हैं...फ़ोकट में मेरा टाईम चबा जाना चाह  रहे हैं...अरे मेरे टाईम का कुछ  भैल्यू  है कि नहीं, ईमानदारी से.....हा,हा, हा....

लपक लाल: अरे गरीब दास जी, ज़रा अमीरी दिखलायें  और पांच हजार रुपए की छोटी सी रकम फ़ौरन दस्तूरी वाले  डब्बे में डाल दीजीए.....उधर बाहर बरामदे में जो सडैला  डब्बा दिख रहा है न, वही है हमारा  दस्तूरी का डब्बा  ..... समझे बरखुरदार गरीब दास जी...

गरीब दास: अरे अरे अरे ये क्या कह रहे हैं आप.... लपक लाल जी आप तो घूस लपकना  चाह रहे हैं. यह तो कोई अच्छी बात नहीं है न...यह तो कानूनी रूप से भी अपराध   है.

दस्तूरी मल ईमानदार: ज़रा शर्म कीजीए गरीब दास जी, मेरे सामने घूस शब्द बोलने की आपने हिम्मत कैसे की  ?  मैं आपकी रिपोर्ट अभी के अभी निगरानी विभाग में कर दूंगा और आप छह साल के लिए जेल पहुँच जायेंगे, ईमानदारी से...बड़ा आये है, दस्तूरी मल  ईमानदार को घूस देने वाले....शर्म कीजीए, शर्म कीजीए, ईमानदारी से....गरीब दास जी, मेरे माँ-बाप ने मेरा नाम यूँ ही नहीं रखा था दस्तूरी मल ईमानदार....जो करता हूँ दस्तूरी ले कर करता हूँ और ईमानदारी से करता हूँ.....और आप एक ईमानदार आदमी के साफ़ सुथरे चरित्र पर ऊंगली  उठा रहे हैं......ईमानदारी से.....

गरीब दास: मेरे कहने का मतलब....

लपक लाल: (बीच में टोकते हुए)बस,बस, बस, गरीब दास जी, अब आप हमलोगों को और खाश कर इस नाचीज लपक लाल को अपने कहने का मतलब बताने की जुर्ररत  करेंगे ? अरे ये हम ही हैं जो बता सकते हैं कि  कानून या प्रावधानों का अर्थ क्या है...आप न तो तीन में हैं न तेरह में ....अब आप हमलोगों को किसी चीज का अर्थ बता कर, हम लोगों का मिजाज मत खराब  कीजिए.....

दस्तूरी लाल ईमानदार:अरे, अरे,आप तो  गजब ढा रहे हैं गरीब दास जी, मुझको आपसे ऎसी उम्मीद नहीं थी, ईमानदारी से...अरे लपक लाल जी ने तो आपको दस्तूरी जमा करने का तरीका बता दिया, बिना खाए पीए और आप हैं जो घूस मांगने का इल्जाम लगा रहे हैं. आप जैसे लोग अहसानफरामोश होते हैं, यह मुझे मालूम है, ईमानदारी से....

गरीब दास: क्या दस्तूरी में पांच हजार रुपया मांगना गुनाह नहीं है ?

दस्तूरी मल ईमानदार: अब आप आए रास्ते पर.....हाँ,  हाँ, दस्तूरी लेना कोई गुनाह नहीं है.....मैं आपके घर जाऊं   और कहूँ कि  आप अपने कुएँ से पचास  बाल्टी पानी भर दें, हम स्नान करेंगे, तो मैं बताता हूँ कि  आप मुझे लाठी मार कर भगा देंगें......,क्यों लपक लाल जी मैं ठीक बोल रहा हूँ न, ईमानदारी से ?

लपक लाल: चकाचक जी, बिल्कुल ठीक बोल रहे हैं दस्तूरी मल ईमानदार जी....दस्तूरी लेना कोई गुनाह नहीं है...

गरीब दास: आप लोग मुझको मूर्ख समझ रहे हैं क्या?

दस्तूरी मल ईमानदार: इसमें समझने की क्या बात है, ईमानदारी से...(समवेत हंसी)....अरे गरीब दास जी, यह काम करने वाला कार्यालय है....कोई खैराती कार्यालय नहीं....ज्यादा देर करेंगे, तो अभी जो  छूट हम दस्तूरी पर दे रहे हैं, उसे हम अभी का अभी वापस ले लेंगे, ईमानदारी से ?

लपक लाल: देखो भाई दस्तूरी मल ईमानदार जी, हम गरीब दास जी की बक-बक सुन कर परेशान हो गए हैं, सो हम अभी का अभी छूट वापस ले रहे हैं...(पुकारते हुए) अरे गरीब दास जी...

गरीब दास: जी, लपक लाल जी, मैं आपकी बात सुन रहा हूँ , कहिये...क्या कहना है आपका ?

लपक लाल: अब आपको पांच हजार की जगह दस हजार देना होगा दस्तूरी में, चकाचक जी...

गरीब दास: यह तो आप लोग मुझपर जुल्म कर रहे हैं....मैं एक गरीब आदमी हूँ और मैं कानूनी रूप से एक सही काम करवाने आया हूँ ,जिसे करना आप लोगों की  जिम्मेदारी है......है कि नहीं दस्तूरी मल ईमानदार जी?

दस्तूरी मल ईमानदार: बिलकुल ठीक कहा आपने गरीब दास जी ,ईमानदारी से...यह हमलोगों की जिम्मेदारी है, तभी तो आप मेरे पास यह काम करवाने आए हैं.....चूँकि यह काम बिल्कुल जायज है, इसलिए ही हमने भी तो बड़ी ईमानदारी से दस्तूरी माँगा है, दस हजार रुपए, ताकि हम अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा पाएं, है कि नहीं लपक लाल जी?

(कविता देवी का प्रवेश.....पायल की छम-छम के साथ)
लपक लाल: दस्तूरी मल ईमानदार जी, यह लो भैया एक और बला आ गयीं हैं, कविता देवी जी....

कविता देवी: आई तो थी मैं अपने काम से, लेकिन लगता है कि लपक लाल जी कविता सुनने-सुनाने के मूड में हैं, तो पेश है- मैं अबला नहीं बला हूँ/ बिना काम हुए  कभी नहीं टला हूँ...कुछ और पेश करूँ?

दस्तूरी मल ईमानदार: नहीं, नहीं आज के लिए इतना ही काफी है, कविता देवी जी...आप अगली कविता बिना  सुनाए, दस्तूरी मनी को दस्तूरी डब्बे में झट-पट डाल दें, अपने नाम के चुटके के साथ...बस तीसरे दिन आपके काम को हम फ़ौरन कर देंगे, ईमानदारी से....

कविता देवी: अरे दस्तूरी लाल ईमानदार जी, मैं तो दस्तूरी मनी  उस सड़ेला डब्बे में डालती हुई, आपके दरबार में आई हूँ चहकती हुई....

गरीब दास: मैं भी डाल दे रहा हूँ दस्तूरी आपके प्यारे दस्तूरी डब्बे में, लेकिन मैं पांच हजार ही डालूँगा, चलेगा कि नहीं....और नहीं चलेगा तो, मैं चला....

दस्तूरी लाल ईमानदार: अरे गरीब दास जी, आज के दिन मैं आपको निराश नहीं करूगा, ईमानदारी से, कदम बढाएं और डब्बे में दस्तूरी डाल दें और फटाफट-सटासट  खिसक लें यहाँ से....

कविता देवी: अरे मैंने  अर्ज किया है-(गाती  हुई)  डब्बे में पड़ी गड्डियाँ कहीं पतली न हों/ उनमें  कहीं नोट नकली न हों/ आज कल तो आदमी भी नकली होते हैं/ हर चेहरे पर मुखौटे चिपके होते हैं/  कब न जानें  सांप मिल जाएं आस्तीन में/शरीफ  लोग नोट गिन कर रखते  हैं जेब में/....

दस्तूरी मल ईमानदार: कविता देवी जी, आप सौ प्रतिशत ठीक फरमाती हैं....(मोबाइल पर  नम्बर   डायल  करता है) ....अरे दसनम्बरी, दो बण्डल पांच-पांच हजार के हैं, जल्दी चेक कर ले, ईमानदारी से.....(मोबाईल आफ करता है).... हा,हा,हा, हमारा दस्तूरी लेने का सिस्टम बिल्कुल फुलप्रूफ है...जेम्स बांड भी हमारे इस सिस्टम को जान कर चकरा  जायेगा, ईमानदारी से.....

कविता  देवी: एक लेटेस्ट इसी पर सुन लें- हमें तो लूट लिया मिल के  ईमानदारों ने/गोरे गोरे लपक ने, काले काले दस्तूरी ने/हमें तो लूट लिया मिल के दस्तूरी वालों ने...हमें तो लूट  लिया मिल के ईमानदारों ने..... 
दस्तूरी मल ईमानदार: कविता जी बस, बस,बस, मान लिया कि आप अच्छा गाती हैं, ईमानदारी से... और अब आप कविता जी और गरीब दास जी अपने-अपने घरों के लिए प्रस्थान करें...अब हम यहाँ अपना दरबार लगायेंगे, ईमानदारी से....माल पत्तर बांटेंगे ईमानदारी से....

गरीब दास: दस्तूरी मल ईमानदार जी और लपक लाल जी....इस बार तो हम आप दोनों को अपने साथ ले कर यहाँ से जाने वाले हैं, ईमानदारी से...

कविता देवी: क्या बताएं क्या गुजरेगा  आप पर हमारी बहादुरी से /आप दोनों पकड़े गए  हैं घूस लेते रंगे हाथ, ईमानदारी से ? 

दस्तूरी  मल ईमानदार:अरे आप दोनों यह कैसी-कैसी अशुभ  बातें कर रहे हैं, ईमानदारी से.....ये घूस-वूस क्या होता है ? ये रंगे हाथ का क्या है खेल ? हाथ हमारे तो हैं साफम-साफ़, ईमानदारी से....  

गरीब दास और कविता देवी का समवेत स्वर: हम लोग निगरानी  विभाग के अधिकारी हैं, ईमानदारी से....हम लोगों ने आपके दसनम्बरी को भी गिरफ्तार कर लिया है, ईमानदारी से!

दस्तूरी मल ईमानदार: ईमानदारी से, चल लपक लाल अब जेल, वहीँ निकलेगा अपनी किस्मत का तेल.....
 लपक लाल:डब्बेदार दस्तूरी का सिस्टम हुआ फेल/सुनलो भ्रष्टाचारी से कभी न करना मेल... 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा पोस्ट , दीपवाली की शुभकामनाये
    sparkindians.blogspot.com

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  2. रुचिकर आलेख । बहुत अच्छा लगा। दीपावली की शुभकामनाएं.

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  3. लेखन अपने आपमें रचनाधर्मिता का परिचायक है. लिखना जारी रखें, बेशक कोई समर्थन करे या नहीं!
    बिना आलोचना के भी लिखने का मजा नहीं!

    यदि समय हो तो आप निम्न ब्लॉग पर लीक से हटकर एक लेख
    "आपने पुलिस के लिए क्या किया है?"
    पढ़ सकते है.

    http://baasvoice.blogspot.com/
    Thanks.

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