शनिवार, 18 दिसंबर 2010

थानेदार साहब नहीं आए



कहानी 
            
       वह बहुत ही सहमी हुई थी...वह काँप रही थी...लगता था कि वह किसी खौफनाक हादसे से अभी-अभी गुजरी है...मैं सोचने लगा कि उस अनजान  लड़की से कैसे और क्या बात शुरू करूँ?मैं धीरे से उसके पास पहुंचा और पूछा."क्या हुआ ?...तुम तो बहुत घबराई हुई लग रही हो?....क्या मैं तुम्हारी कुछ मदत   कर सकता हूँ?"
         कांपती हुई आवाज में उसने कहा," अभी जो ट्रेन गुजरी है...."
        "हाँ,हाँ, अभी ट्रेन गुजरी है.....क्या हुआ?" 
        " मैं उस ट्रेन के आगे छलांग लगाने वाली थी....लेकिन..."
        " लेकिन क्या?"
        " लेकिन मुझसे पहले मैंने देखा कि....."
        " देखा कि?"
        " मुझसे पहले....मुझसे पहले  मेरी माँ  ने ट्रेन के आगे छलांग लगा दी....."
        " अब?"
        " अब मुझको वापस अपनी झोपड़पट्टी  जाना होगा....छोटा भाई किशोर  भूखा सो रहा होगा...."
       यह कह कर वह रो पड़ी थी....बेबसी की उस घटना ने मुझको भी दहला दिया....मैंने किसी तहर अपने आप को सम्हाला...तभी स्टेशन पर कुछ लोग चीखने-पुकार मचाने लगे...
         " मैंने उसको कहा," पहले अपनी माँ के बारे में सोचो कि क्या करना है...."
        " उसकी लाश को कल मुर्दाघर से ले लेंगे...लेकिन पहले तो मुझे  किशोर  को सम्हालना होगा....आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं?"
         " हाँ, लेकिन मुझको अपनी दिल्ली यात्रा स्थगित करनी होगी... खैर, चलो.. "
         " नहीं, आप दिल्ली जाएं मैं कुछ और उपाय कर  लूंगी..."
         " नहीं, मैं अब दिल्ली नहीं जाऊंगा....चलो तुम्हारे घर चलता हूँ...."
         " चलिए...."
         जो लड़की कुछ क्षण पहले तक इतनी घबराई हुई थी वह  अचानक इतनी संयत हो गई, यह देख कर मुझे आश्चर्य के साथ-साथ शंका भी हो रही थी कि कहीं दाल  में कुछ काला तो नहीं है....लेकिन एक पत्रकार होने के नाते मैंने  रिस्क ले लिया."
        रास्ते   में उसने मुझको अपना नाम ललिता बताया...उसने यह भी बताया कि गरीबी और जिल्लत के डर  से वह आत्महत्या करने जा रही थी...उसके पिता ने एक वर्ष पहले गरीबी से ही त्रस्त  हो कर आत्महत्या कर ली थी....वह महिला कालेज में बी.ए.की पढ़ाई  किसी तरह ट्यूशन आदि कर के कर रही थी.....
         जब उसकी झोंपड़ी के पास  पहुंचा तो देखा कि वहां भीड़ जमा है....भीड़ में से एक ने ललिता को देखते ही कहा,"कहाँ गई थी...तुमको मालूम है कि तुम्हारी माँ ने....."
         " मालूम है....आप लोग  कृपया मुझको अकेली छोड़ दें. आप अगर मदद में आगे आयेंगे तो मुझे फिर लूटने के लिए ही आगे आएंगे.आप लोग मुझे किसी होटल में पहुंचा देंगे.अब तो कम से कम मुझ पर रहम कीजीए." 
         झोपड़पट्टी के सारे लोग ललिता को गालियां देते हुए अपनी-अपनी खोली में चले गए.
          उसने मुझसे कहा," आपने मेरी दुनिया देख ली.....आपको लग रहा होगा कि मैं पागल हूँ या फिर मेरी दुनिया कितनी पतित है...सर, आपकी जो भी दुनिया होगी वह भी ऎसी ही  होगी.जिस्म की प्यासी...." और वह रो पड़ी....
            कुछ संयत होते हुए उसने मुझको कहा," क्या आप मुझको कुछ रूपए दे सकते हैं....कल माँ की लाश लाने में भी बहुत खर्च होगा....नगरनिगम का क्लर्क भी लाश जलाने के लिए कम से कम पांच सौ घूस में मांगेगा....जब बापू ने आत्महत्या की थी तब भी लाश जलाई  पांच सौ देने पड़े थे....अभी पुलिस भी आ कर तंग करेगी सो अलग..."
             मैंने उसे पर्स से तीन हजार रूपए दे दिए.
            " मै आपके सारे रुपए धीरे-धीरे कर के लौटा दूँगी...." यह कर कर ललिता झापडी के अंदर तेजी से गई और कागज कलम ले कर वापस आई और मेरा पाता और मोबाईल नम्बर नोट कर लिया...तभी पुलिस की जीप आ कर रुकी. जीप से हवालदार उतरा और उसने पूछा," अरे तुम ही ललिता हो जिसकी माँ साली मेरे थाना क्षेत्र में आत्महत्या कर ली....चलो पांच सौ निकालो ताकि बड़ा साहब तुमको रिपोर्ट दे सकें और तुम कल मुर्दा घर से अपनी माँ की लाश ले सको....और हाँ, थाना चलने के लिए भी तैयार हो हो....पिछले सल जब तुम्हारा बाप मारा था तो तुम्हारी माँ रात भर थाने में रही थी....अरे,अरे ये चिकना साला  तेरे बगल में कौन खड़ा है?"
             " चिकना साला विजय जी हैं जो जनमत अखबार के रिपोर्टर हैं.....और कुछ कहना-पूछना है क्या?"
            हवालदार रिपोर्टर शब्द सुनते ही सीधे जीप में बैठे बड़ा साहब के पास गया और उससे कुछ बात की और फिर ललिता के पास लौटा और एक रिपोर्ट उसके हाथ में डाल कर चलता बना...पुलिस की जीप वसूली अभियान को अधूरा छोड़ कर चली गई तो ललिता ने मुझ से कहा," सर, मैं आपके सारे पैसे लौटा दूँगी, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े....अब तो भाई के लिए नरक भोगने के लिए तैयार होना ही होगा.....    
           मैंने उससे विदा लेते हुए कहा,"पैसे लौटाने की जरूरत नहीं है. "
            " ऐसी बात मत कीजिए, सर....आप मुझसे नाराज हो गए क्या...मैंने पुलिसिया अंदाज में आपको गाली जो दे दी,लेकिन पुलिस यही भाषा जानती है, क्या करूं....अगर आप न आते तो मुझे  रात भर थाने में रहना  पड़ता...जब मेरे बापू मरे थे तो मेरी माँ  को रात भर थाने में रहना पड़ा था, पति की मौत का टैक्स चुकाने!"
           मैं ललितासे विदा ले कर सीधे अपने अख़बार के दफ्तर पहुंचा. वहां मैंने ललिता  की कहानी लिखी और दूसरी सुबह वह कहानी अखबार के मुख्य पृष्ठ छपी.सभी दलों के नेताओं को एक मुद्दा मिल गया. ललिता की झोपड़पट्टी के सामने टीवी पत्रकारों की कतार लग गई. नेता लोग आते और कुछ न कुछ ललिता के हाथमें रख जाते।वैसे नेता भी पहुंचे जो सेवक तो जरूर कहलाते  हैं लेकिन, किसी से सेवा लेने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते.  किन्तु  थानेदार साहब नहीं आए क्योंकि उनको एसपी साहब ने सस्पेंड कर दिया था.            
         

         
      
  

1 टिप्पणी: