*दिलीप तेतरवे
अम्मा रो रही थी, अपनी झोंपड़ी के लिए नहीं, कालू के लिए. अम्मा सिपाहियों को गालियाँ दे रही थी-"मुए, कालू को क्यों मार दिया, मारना ही था तो मुझे मार देते."
बुल डोज़र के चालक ने सर झुकाए हुए कहा-"अम्मा हम तो सिर्फ ड्यूटी कर रहे हैं, खुदा माफ़ करे."
वे कानून के बहुत बड़े जानकर थे. उन्होंने कहा-"कानून सेंटी नहीं होता है.”
एक और जानकर उनसे बहस करने के मूड में बोले-"फिर आप जनहित याचिकाओं के सम्बन्ध में क्या कहेंगे?"
कानूनविद महोदय ने कहा-"मुझसे बहस में मत उलझिए जनाब. अगर कुछ जानकारी चाहिए तो पहले फीस दीजिए."
और कुम्हलायी हुई गोरी चिट्टी मुनिया सड़क के किनारे ईंट जोड़ कर बनाये चूल्हे पर रोटियां सेंकने लगी थी. बूढी दादी और नन्हीं छोटी के लिए कम से कम रोटी नमक तो जुगाड़ना ही था. और जब विपदा आयी हो तो सेवक लोग भी सफ़ेद कुरता पजाम में पहुँच ही जाते हैं. सो पहुँच गए. मुनिया को सेवा देने के लिए कई हाथ लपके. मुनिया सेवकों के हाथों को पहचानती थी. वह जब से तेरह-चौदह की हुई थी वह सेवादारों को पहचानने लगी थी. वह जानती थी की मदद के हाथ मछली के जाल होते हैं.
सुगिया उधर अपने बच्चे को दूध पिला रही थी. बहुत से जनसेवक उसे देख रहे थे, माँ की तरह नहीं ! वे तौल रहे थे उस माँ को अपनी तराजू में. जनसेवा करते हुए कुछ जनसेवक राबड़ी का आनंद उठाना बहुत पसंद करते हैं.
रजिया अपनी किताब ले कर पढ़ रही थी, एक झोंपड़ी के मलवे पर. उसकी दसवीं की परीक्षा थी. वह धीरे से बुदबुदाई-"रात में, न जाने कहाँ, सोने का इंतजाम अब्बू करेंगे. रात की तो पढ़ाई गयी."
रजिया के अब्बू तभी कहीं से आये और अपनी बीवी से बोले-" टोनी तो एक कमरा किराए पर देने के लिए तैयार है, लेकिन क्या बताएं, उसके घर का इलाका शरीफों का नहीं है. "
"या अल्लाह!" इससे अधिक रजिया की अम्मा नहीं बोल पायी.
"खैर, मैं अब कल्लन के पास जाता हूँ..."
रजिया मन ही मन बोली-" या अल्लाह, मेरे ख्वाब का क्या होगा?"
तभी सरकारी माइक से आवाज गूंजने लगी-" जो भी लोग बेघर कर दिए गए हैं उनको अट्ठारह महीने के अन्दर फ़्लैट दिए जायेगे. फ़्लैट के बदले में हर उजाड़े गए परिवार को बीस हज़ार रूपए देने होंगे."
जनकुआ ने सिर पीटते हुए पूछा-" ज़फर भाई, जिंदगी में कभी इकठ्ठा बीस हजार रूपये तुमने देखा है."
"काहे सरकार की तरह मुझसे मजाक कर रहे हो. एक बात कहें, कहीं सर छिपानेकी जगह मिल जाये तो फिर से ठोंगा बनाने का काम शुरू कर दें. हमको लगा था कि सरकार ने प्लास्टिक के थैले पर रोक की घोषणा कर दी है, तो कागज के ठोंगे का मेरा काम फिर चल निकलेगा. लेकिन......"
गोगिया ने पूछा-" घर को क्यों तोडा दिया , माँ ?"
माँ ने बताया-" सौ बरस पहले तुम्हारे लकड़ दादा को कोयला खान के मालिक लाल साहब ने बलिया से यहाँ ला कर बसाया था. बाद में कोयला खान सरकारी हो गया और हमारी घर वाली जमीन भी सरकारी, और सरकारी जमीन पर किसी को रहने का अधिकार नहीं है."
वहीँ बगल में बैठा गोगिया का पिता अखबार पढ़ रहा था-" मंत्री जी के पास तीन तीन सरकारी आवास हैं और उनके चमचों ने भी अनेक सरकारी क्वार्टरों पर कब्ज़ा कर रखा है.....बड़े भवन, मल्टीप्लेक्स आदि न तोड़े जाएँ इसके लिए सरकार ने अध्यादेश लाया है......"
जीवन की सच्चाई बताती कहानी अच्छी लगी| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएं