बुधवार, 7 सितंबर 2011

रामलीला


रामलीला
कहानी
दिलीप कुमार तेतरवे

"अरी चुनरी, तुमने कितने पैकेट गुझिया बेच लिए?"
"अरे झुनकू, अब यह सब मत पूछो, बूढा अपनी भूख हड़ताल तोड़ने जा रहा है। कल तक तो हम लोग मस्ती में थे।बारह का गुझिया पंद्रह-बीस में बेच रहे थे। अब बूढा अनशन तोड़ देगा और तमाशा खत्म और हम लोग फ़िर से कूड़े के ढेर पर प्लास्टिक और लोहा चुनना शुरू कर देंगे।"
"लेकिन बूढा तो अभी माइक पर कह रहा था कि वह बीस दिन तक भूखा रह सकता है और तुम कह रही हो कि वह अनशन तोड़ रहा है।"
"हम सही कह रहे हैं। अभी उ लेडी यही बात कह रही थी, जो मंच पर बूढे की बगल में बैठी है।"
तभी चुनरी के पास एक चक-चक सफ़ेद कुर्ता पाजामा में एक लड़का आया और बोला,"ओए छोकड़ी, गुझिया के साथ मीनरल वाटर भी रखी है क्या? साला! वन्दे मातरम बोलते-बोलते गला सूख गया है।"
"जी, मेरे पास गुझिया और पानी है, लेकिन …।"
"अरे! तुम्हारे हाथ में तो मिनरल वाटर ही है। चलो, एक पैकेट गुझिया और एक बोतल वाटर दे दो…कितना लोगी?"
"दोनों मिला के पैंतीस रुपए, बस"
"अरे ससुरी, मजमा देख के रेट बढा दी है…ठीक रेट लगाओ, नहीं तो पुलिस से पकड़वा देंगे।"
पता नहीं चुनरी में अचानक कहां से इतनी ताकत आ गई कि उसने तेज स्वर में कहा," पुलिस की धमकी मत दो भैया जी…मेरे पास लूट का माल नहीं है…"
"अरे! हमको ताव दिखाती है…देंगे एक झांपड़ कि दिमाग ठीक हो जाएगा……बोलो तीस में दोगी?"
"नहीं, एक पैसा कम नहीं लूंगी।"
शायद, चुनरी का तेवर देख कर वह युवा नेता डर गया। शायद, उसे भीड़ का भी खौफ़ रहा हो। उसने पैंतीस रुपए चुनरी को देते हुए कहा," चलो, तुमको पैंतीस ही दे देते हैं, कौन मेरी कमाई का पैसा है। पार्टी से मिला है। हम तो तीन-तीन वोलेन्टीयर का पैसा आज उठा चुके हैं……एक बार, रहीम बन कर, एक बार रमेश बन कर और एक बार अमिताभ बन कर, हा, हा, हा," वास्तव में वह तो अपनी झेंप मिटा रहा था।

      तभी एक भारी भड़कम व्यक्ति चुनरी के निकट आ कर खड़ा हो गया। वह फ़ोन पर किसी से बात कर रहा था…"अजी, लोग ऐसे ही मुझको महासागर जी नहीं कहते हैं……देखिए, आप इस बात का चिन्ता मत कीजिए कि आप ने क्या घोटाला किया है। आपकी चिन्ता, अब मेरी चिन्ता है……अरे आप सात खून कर भी आयेंगे तब भी हम आपको बाइज्जत बरी कराने की ताकत रखते हैं…ऐसे ही लोग मुझे महासागर जी नहीं कहते हैं……अरे हम तो खानदानी वकील है…मेरे बाप-दादा तो कितनों को फ़ांसी के फ़ंदा से उतार कर घर पहुंचाए हैं, उ तो आप जानते ही होंगे…हा, हा, हा, देखिए, अभी हमको भ्रष्टाचार पर तगड़ा विचार, सामने वाले  मंच से रखना है, सो हम आपके घोटाले के केस पर देर रात, बोतल पर बात करेंगे, हा, हा, हा। अभी समाज सेवा कर रहे हैं और रात में आपकी सेवा करेंगे…लेकिन आपको मेरा ब्रांड याद है न? हा, हा, हा……।" मोबाइल बंद करते हुए उसने अपने पीछे आ रही एक लड़की से कहा,"लेक्चर देते समय का मेरा फ़ोटो जरूर खींच लेना, कई एंगल से, बड़ा काम देगा, मुवक्किलों को लु्भाने में।"
"ठीक है सर!"
महासागर जी ने चुनरी की ओर मुड़ते हुए कहा,"ओय, पानी पिला।"
चुनरी ने भांप लिया था कि आदमी मालदार है, इसलिए उसने कहा,"जी तीस में एक बोतल मिलेगा।"
"पैसा का काहे चिंता करती है रे।" यह कह कर उसने अपने पीछे खड़ी लड़की से कहा,"लीजा डीयर, इस छोकड़ी को तीस की जगह, पचास रुपए दे दो…बहुत गरीब लगती है…"
"येस सर!" लीजा ने कहा और चुनरी को पचास रुपए दे दिए।
चुनरी दौड़ कर झुनकू के पास पहुंची और बोली," जानते हो, वह मोटा आदमी मुझे अपने मन से एक बोतल पानी का पचास रुपया दे गया है।"
"अरे, वह पगला तो मुझको कल, पंद्रह के बदले सौ रुपए दे गया था। लगता है, इस मोटे के पास रुपए का पेड़ है!"
"अरे उसके पीछे-पीछे जो लड़की चल रही है, उसके पास बैग में बहुत सा रुपया है……और जानते हो, रूपेश की उस बैग पर नजर पड़ गयी है।"
"तुम चुप रहो चुनरी…देखना,रूपेश आज पाकिटमारी करते हुए पकड़ा जाएगा…अरे, अरे, रूपेश तो उस लड़की के ठीक पीछे पहुंच गया है।"
" और, और, झुनकू, उसने उसके बैग में हाथ भी डाल दिया है…नोट का एक बंडल भी निकाल लिया है।"

       कुछ लड़के नारा लगा रहे थे," हाथ हमारा नहीं उठेगा, हमला चाहे जैसा होगा।" इनमें से कुछ ने रूपेश की हरकत को देख लिया और नारा रोक कर, अपने हाथ के झंडे पताके फ़ेंक कर, रुपेश पर पिल गए। लात-जूते चलाने लगे। रूपेश लहू-लुहान हो गया। फ़िर पुलिस आई और रूपेश को पकड़ कर गाली-गलौज देते हुए हिंसक लड़कों से छुड़ा कर ले गई। इस बीच चुनरी और झुनकू दम साधे बैठे रहे। एक दो बार तो वे भी पुलिस की पकड़ में आ चुके थे, सो उनको भी पुलिस का डर हो गया था कि कहीं दारोगा जी उन दोनों को तो नहीं पहचान लेंगे। लेकिन दारोगा जी की उनपर नजर ही नहीं पड़ी। रूपेश का मामला समाप्त होते ही, वे दोनों फ़िर बतियाने लगे।
"झुनकू, मैं भी बड़ा हो कर सामाजिक संगठन बनाऊंगी।"
"मूरख चुनरी! मैं तो बड़ा हो कर असामाजिक संगठन बनाऊंगी। मुझको दो-चार कट्टे जुगाड़ने होंगे, बस।"
उन दोनों की बात एक बूढा आदमी सुन रहा था। उसने झुनकू को टोका," अरे बेटे, ये कैसी बात कर रहे हो? तुम बड़ा हो कर अपराधी बनना चाहते हो?"
झुनकू ने बिना हिचके जवाब दिया," नही सर! मैं तो अपने इलाके के गोगा पहलवान की तरह बनना चाहता हूं। वह भी पहले हम लोगों की तरह गरीब था। कोयले चुन कर खाना जुगाड़ता था। अब देखिए, उसके घर में क्या नहीं है। दारोगा जी उसको रोज सलाम ठोंकते हैं। उसने भी तो दो कट्टे से असमाजिक संगठन बना कर धंधा शुरू किया था। अब वह चुनाव भी लड़ने जा रहा है।"
बूढे ने लम्बी सांस ली और कहा," हे भगवान! ये कैसी रामलीला?"

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